आभासी आलिंगन …

तुम्हें अपने आलिंगन में लेने के लिये
मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं पड़ती है
हाँ सच करना कभी तुम भी महसूस

बस मन के धरातल पर तुम्हारी
तसवीर उभरती है स्पष्ट सी
और देखती है मुस्कुरा कर ओर मेरी

और मेरे ख़्याल भर कर तुम्हें
अपनें सशक्त बाहु पाश में
कर लेते हैं तुम्हारा कस कर आलिंगन

कौन कहता है कि छूने के लिये
देह का पास या साथ होना
आवश्यक है … नहीं है न 🙂

#पगले_ख़्याल
#राधा

Feeling’s…. भावनायें

क्या feeling किसी पर थोपी का सकती हैं
क्या कोई जबरदस्ती किसी को चाह सकता है
ज़रूरी नहीं जब किसी के लिये feelings आयें तो
उन्हें जताना जरूरी है


ये तो कभी भी किसी के लिये आ सकती हैं
फिर ये कैसे कह देते हैं तुम्हें क्यों नही feel
होता जैसा मुझे feel होता है
सब का अपना नजरिया सबकी अपनी सोच


कौन किसे चाहता है वो उसका personal decision है
हम उस पर दबाव नहीं बना सकते
उसका view पूछना चाहिये अगर वो
नहीं वैसा feel करता तो नाराज नहीं होना चाहिये
बल्कि उसके decision की respect करनी चाहिये


क्या पता वो किसी और को चाहता हो
और तुमसे अच्छी दोस्ती रखना चाहता हो
मुझे लगता है दिल में feeling आना जरूरी है
ये हमे एहसास दिलाती हैं
हमारा दिल भी धड़कता है


किसी को देख कर ख़ुशी मिलती है
किसी से बात कर के ख़ुशी मिलती है
वो भी हमसे अपनापन दिखाता है
तो अपना भ्रम बरकरार रखना चाहिए
जता कर नाराज हो कर block करने से
वो feeling नहीं ख़त्म होगीं
बल्कि ज़्यादा दुख होगा


और दोस्ती में दरार आ जायेगी
और एक बार आई दरार फिर नहीं भरती
तो जो जैसा है उसे स्वीकार करो
उसे बदलने की कोशिश न करो


अपनी feeling के साथ उसकी feelings की
Respect कर जिंन्दगी भर के रिश्ते बना लेने चाहिये…!!

प्रेम का कर्ज़…

सुनों
याद है तुम्हें
एक बार दी थी तुम्हें मैंने
एक छोटी सी डिबिया सिंदूर की

इस चाहत को लिये
कि तुम सजा दो उसे
मेरी सूनी माँग में

पर तुम मुकर गये
ये कहते हुये कि राधा
ये सब ईश्वर के विरुद्ध है

मैं सोचती रही कि
कौन सा ईश्वर
मेरे लिये तो मेरे ईश्वर तुम्हीं हो

तुम्हारे ऊपर कर्ज़ है मेरा
वो सिंदूर की डिबिया
उसे उतार देना तुम

बहा देना उस सिंदूर को
किसी बहते निर्मल नीर मे
कि वो लाल रंग शायद

किसी अतृप्त प्रेम में हारी
स्त्री जो यही कामना लिये
समर्पित हो गयी हो जल में

उसे छूकर उसकी माँग में
सज जाये और
पूरी कर दे उसकी

अंतिम ख़्वाहिश
उसके आख़िरी ख़्वाब को
वो हो जाये सुहागन कुछ पल के लिये…!!

कि जाओ तुम्हें मुक्त किया मैनें
इस आख़िरी प्रेम के कर्ज़ से 🖤

राधा अग्रवाल

याद तुम्हारी…

बस है तो मेरे साथ मेरी तन्हाई
जो पल, पल कर रही है खोखला
मेरे मन के दरवाजे को

रात के इस पहर नींद आँखों से कोसो दूर
और तुम
तुम भी तो नहीं हो साथ मेरे

डरती हूँ कि कहीं तुम्हारी यादें
इस खोखले मन से सरक न जायें
करती हूँ कोशिश की संभाले रक्खूँ
तुम्हारी उन यादों को

जो अब भी जीनें का सहारा बनीं हैं मेरे
ये तुम्हारी यादें न होतीं तो
कब की ढ़ह गयी होती
भरभरा कर मैं दीवार की तरह

सच कहते हैं लोग कि कभी-कभी
यादें भी ज़रूरी होती हैं
जीनें के लिये ज़िन्दा रहनें के लिये
सुनों कि तुम्हारी याद आयी है …!!

याद_तुम्हारी

राधा

मेरा पता… अमृता प्रीतम जी…

एक कहानी अमृता की जुबानी


बहुत बरसों पहले की बात है, मुझे गमले और मिट्टी की सुराही लेनी थी, मेरे घर की सड़क
के किनारे सिर्फ एक दो झोंपडि़याँ थी जहाँ मिट्टी के गमले और सुराहियाँ मिलती थी झोंपड़ी में
देखा तो कोई न था जिससे में खरीद पाती

पास की झोंपड़ी में एक खटिया पर बैठी जो एक औरत
पान बीड़ी बेच रही थी उससे पूछा तो कहने लगी. …कहीं पास ही गई होगी. .चलो. .तुम्हें जो
लेना है ले लो,उसके दो पैसे बन जायेंगे, मैं दिए देती हूँ

वह खटिया से उठने लगी तो मुझे लगा वह कुछ मुश्किल से उठ पाई इसलिये कहा..रहने दीजिये
आपको तकलीफ होगी..मैं फिर आ जाऊँगी
वह बोली. .अरी बिटिया! बैठे बैठे क्या बढ़ता है….उम्र ही तो बढ़ती है

मैंने दो-तीन गमले खरीद लिये तो ख्याल आया जिसने इतनी तकलीफ की है उसकी दुकान से
और कुछ नहीं तो दो-चार माचिस की डिबिया ही खरीद लूँ. ..उसे दो-चार पैसे तो मिलेंगे
इसलिये मैंने कहा….अच्छा अम्मा अब एक दर्जन माचिस की डिबिया दे दो


वह जिस तरह कुछ मुश्किल से खटिया पर से उठी थी उसी तरह मुश्किल से बैठते हुए बोली.
इतनी डिबिया लेकर क्या करोगी ?एक ले लो मेरे पास यही तो हैं दस-बारह खत्म हो जायेंगी तो
और लाने के लिए शहर जाना पड़ेगा

पूछा—–अकेली हो ?शहर से सौदा लाने वाला कोई नहीं है तो वह हँस-सी दी
कहने लगी- –हाँ बिटिया ! मैं अकेली हूँ, ईश्वर की तरह अकेली

मैं आज तक उस औरत को नहीं भूल पाई

दुनिया भर की शायरी मेरे सामने है- —विरह गान से भरी हुई, और शायर- —जो बहुत खूबसूरत
तुलनाओं से,तस्बीहों से अकेलेपन की बात करते हैं

लेकिन ऐसा अकेला कौन है,जो ईश्वर की तरह अकेला है ··.!!

अमृता प्रीतम 🖤

प्रेम की अभिलाषी…

प्रेम की अभिलाषी स्त्री को जब नही मिल पाता प्रेम
तो वो अकड़ जाती हैं
किसी सूखे ठूँठ की तरह
वो बन जाती है किसी पुराने कमरे की दीवार पर लगी तस्वीर सी



प्रेम की भागी स्त्रियाँ बन कर रह जाती हैं सिर्फ़ सुंदरता की अतुल्य मिसाल
बेजान और धूल खाई हुई


प्रेम के भीतर व्यर्थ होती वो
सपने और यथार्थ को लपेटे जीवन का बोझ उठाये चलती जाती है सन्नाटे की नोंक पर



अब वो इस तरह हैं कि बहुत सी ऋतुयें आती जाती हैं पर उन पर कोई असर नही होता
वो मन ही मन बीती नईं अनंत बातो का जाल बुनती रहती हैं और उसी मे उलझती जाती हैं


वो नंगे पाँव मे काँटों सी चुभती हैं
ख़ुद को लगातार व्यस्त और मौन सोचती हुई

और एक दिन मृत्यु की सफेद चादर पर
दूर किसी छोर से आती हवा उन्हें ढँक लेती है…!!

हंसती आँखें…

महसूस की है तुमनें कभी

उन हंसती आँखों की नमी

जो हर पल मुस्काती हैं आँसूओं को छुपाकर

कि तुम भांप न लो उनका दर्द

जो वो छुपाती हैं तुमसे तुम्हारे ही लिये

ये सोच कर कि कहीं तुम उनमें नमी देखकर

भटक न जाओ अपनें लक्ष्य से

कि चाहती हैं वो आँखें तुम्हें देखना कामयाब

हर पल तुम्हें तुम्हारी मंजिल की ओर बढ़ता हुआ

और तुम कभी समझ ही न पाये उन आँखों में बसे

तुम्हारे प्रेम को तुम्हारी अवहेलना द्वारा

भीगी हुई प्रेम पगी अँखियों में तुम्हारे प्रति

अगाध प्रेम को…

हो सके अगर समय मिले कभी तो

देखना एक बार गौर से झांक कर

मेरी आँखों में जो धीरे_धीरे पथरा रही हैं

इस इंतज़ार में कि तुम कभी तो देखोगे

उनमें बसा तुम्हारे प्रेम का दर्द…!!

#तुम्हारी

कोई किसी का नहीं होता…

पता है
कोई किसी का नहीं होता
रिश्तें सब मतलब के होते हैं


जब तक ज़िंदा हो तब तक दिखावे का अपनापन मिलेगा
मरने के बाद

ग़र किसी से ख़्वाब में भी मिले
तो अपने बन्दे भी आपको प्रेत समझकर

हनुमान चालीसा करने लगेंगे


सुनो अपने लिये कुछ वक़्त निकालो
सबके अपने बन जाते हो

कुछ अपने लिये भी अपना हो लो…

ज़िन्दगी में कुछ, कुछ ज़िन्दगी से तुम…

कुछ लोग मिल जाते हैं ज़िन्दगी में हमें

जो होते हैं बिल्कुल ज़िन्दगी की तरह ही

तुम भी तो ऐसे ही हो है न

क्या कहें तुम्हें हम दोस्त हाँ दोस्त

यही तो एक रिश्ता बचा है शायद

जो अपनेपन की महक़ लिये और स्वार्थ से दूर है

जानते हो तुमसे मिलना भी है और नहीं भी

मिलना है क्यूँकि तुम्हें देखना है महसूस करना है

तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुमसे गले लग कर

और नहीं मिलना क्यूँकि

एक बार मिलनें के बाद शायद बार, बार मन करे मिलने का

पता नहीं पर जितना सोचती हूँ उतना ही

उलझ जाती हूँ इस बारे में सोच कर

पर तुम वैसे ही रहना हमारे साथ

जैसे हो चाहे हम मिलें न मिलें 🖤

#राधा

कठपुतली…

°°°

तुमनें कहा हंसो, हंसी मैं
तुमनें कहा बोलो बोली
तुमनें कहा चुप रहो चुप रही

मेरी डोर अपने हाथों में थामें
उम्र भर नाचते रहे तुम
तुम्हारे हाथों की #कठपुतली
बनी रही जब तक मैं सब ठीक था

जब मैंने ये डोर तोड़नी चाही
तुम्हारे हाथों प्रताड़ित हो
घर से बाहर हुई मैं…!!

#राधा