मेरा पता… अमृता प्रीतम जी…

एक कहानी अमृता की जुबानी


बहुत बरसों पहले की बात है, मुझे गमले और मिट्टी की सुराही लेनी थी, मेरे घर की सड़क
के किनारे सिर्फ एक दो झोंपडि़याँ थी जहाँ मिट्टी के गमले और सुराहियाँ मिलती थी झोंपड़ी में
देखा तो कोई न था जिससे में खरीद पाती

पास की झोंपड़ी में एक खटिया पर बैठी जो एक औरत
पान बीड़ी बेच रही थी उससे पूछा तो कहने लगी. …कहीं पास ही गई होगी. .चलो. .तुम्हें जो
लेना है ले लो,उसके दो पैसे बन जायेंगे, मैं दिए देती हूँ

वह खटिया से उठने लगी तो मुझे लगा वह कुछ मुश्किल से उठ पाई इसलिये कहा..रहने दीजिये
आपको तकलीफ होगी..मैं फिर आ जाऊँगी
वह बोली. .अरी बिटिया! बैठे बैठे क्या बढ़ता है….उम्र ही तो बढ़ती है

मैंने दो-तीन गमले खरीद लिये तो ख्याल आया जिसने इतनी तकलीफ की है उसकी दुकान से
और कुछ नहीं तो दो-चार माचिस की डिबिया ही खरीद लूँ. ..उसे दो-चार पैसे तो मिलेंगे
इसलिये मैंने कहा….अच्छा अम्मा अब एक दर्जन माचिस की डिबिया दे दो


वह जिस तरह कुछ मुश्किल से खटिया पर से उठी थी उसी तरह मुश्किल से बैठते हुए बोली.
इतनी डिबिया लेकर क्या करोगी ?एक ले लो मेरे पास यही तो हैं दस-बारह खत्म हो जायेंगी तो
और लाने के लिए शहर जाना पड़ेगा

पूछा—–अकेली हो ?शहर से सौदा लाने वाला कोई नहीं है तो वह हँस-सी दी
कहने लगी- –हाँ बिटिया ! मैं अकेली हूँ, ईश्वर की तरह अकेली

मैं आज तक उस औरत को नहीं भूल पाई

दुनिया भर की शायरी मेरे सामने है- —विरह गान से भरी हुई, और शायर- —जो बहुत खूबसूरत
तुलनाओं से,तस्बीहों से अकेलेपन की बात करते हैं

लेकिन ऐसा अकेला कौन है,जो ईश्वर की तरह अकेला है ··.!!

अमृता प्रीतम 🖤

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